ब्रेकिंग: रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर — 1 डॉलर = ₹ 90+

बुधवार 3 दिसंबर 2025 को भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹ 90 का मनोवैज्ञानिक स्तर पार कर गया। शुरुआती कारोबार में यह गिरकर ₹ 90.14 प्रति डॉलर तक पहुंचा — जो अभी तक का रिकॉर्ड निचला

कुछ रिपोर्ट्स में 1 डॉलर = ₹ 90.02 के स्तर की सूचना दी गई है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिरावट एक-अचानक नहीं बल्कि पिछले 8 महीनों से जारी कमजोरी का नतीजा है।

 

गिरावट के पीछे प्रमुख कारण

• विदेशी पूंजी का निर्गमन (Outflow)

बाहरी निवेशकों — खासकर एफपीआई (FPI) — ने भारतीय शेयर बाजारों से धन निकाला है। जैसे ही वे रुपये में अपनी संपत्ति बेचकर डॉलर में लौट रहे हैं, डॉलर की मांग बढ़ रही है, जिससे रुपये की अवमूल्यन-दबाव बढ़ा ह

• निर्यात, तेल और आयात आधारित मांग

भारत का अधिकांश कच्चा तेल, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य आयात डॉलर में होता है। डॉलर की बढ़ती कीमत का मतलब है कि आयात महंगा पड़ेगा, जिससे डॉलर की मांग और बढ़ जाती है।

• Reserve Bank of India (RBI) की सीमित दखल — और मार्केट की भावना

जहाँ बाजार को उम्मीद थी कि RBI डॉलर-रुपया विनिमय पर हस्तक्षेप करेगा, वहाँ केंद्रीय बैंक ने इस गिरावट को “मार्केट-मय” गिरावट मानकर सीमित दखल दी है। इससे निवेशकों में अनिर्णय और कमजो

• वैश्विक और द्विपक्षीय आर्थिक व भू-राजनीतिक अनिश्चितता

दुनिया में डॉलर की मजबूती, कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता ने रुपये को दबाव में रखा है। साथ ही, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता ने निवेशकों की तटस्थता बढ़ाई है।

इससे आम आदमी और अर्थव्यवस्था पर असर

📈 महंगाई तथा आयातित वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ेंगी

तेल, दवाई, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी — जो कि डॉलर में आयात होती हैं — की कीमतें बढ़ने की संभावना है। इसका असर सीधे पेट्रोल-डिजल, दवाइयों और दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतों पर पड़ेगा।

🌍 विदेश में पढ़ने वाले छात्रों, यात्रियों और विदेश खर्च करने वालों पर बोझ

अगर आप विदेश में पढ़ते हैं या विदेश यात्रा की योजना बना रहे हैं — तो डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होने से आपकी लागत बढ़ेगी। फीस, हॉस्टल, यात्रा खर्च आदि महंगे हो जाएंगे।

📉 शेयर-मार्केट, निवेश और निवेशकों का भरोसा प्रभावित

मौद्रिक अस्थिरता से निवेशकों का भरोसा हिल सकता है। विदेशी निवेश की निकासी और बढ़ी असुरक्षा से शेयर-बाज़ार पर दबाव पड़ सकता है।

👍 लेकिन — निर्यातक और कुछ उद्योगों के लिए फायदा हो सकता है

दूसरी ओर, जिन भारतीय कंपनियों, ख़ासकर निर्यात-उद्योगों (जैसे टेक्सटाइल, दवाइयां, आईटी, ऑटो पार्ट्स), को डॉलर में भुगतान मिलता है — उनके लिए रुपये की कमजोरी लाभदायक हो सकती है। क्योंकि उन्हें डॉलर में मिले पैसे अब रुपये में अधिक मिलेंगे।

 

आगे की संभावित दिशा — क्या हमें और गिरावट की तैयारी करनी चाहिए?

हालाँकि 90 का ₹/US$ लेवल पहले ही टूट चुका है, लेकिन कई विश्लेषक अब आगे ₹ 91–92 तक गिरावट की संभावना पर चर्चा कर रहे हैं, खासकर यदि विदेशी पूंजी का बहिर्गमन जारी रहा। Reuters+2Reuters+2

अगले कुछ सप्ताह में यह देखने की जरूरत है कि क्या HDFC Bank और अन्य बैंकों की चेतावनियाँ सच होती हैं, और क्या $–INR पर फिर से दबाव बनेगा।

इसके अलावा, अगर अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होती है या डॉलर की मांग और बढ़ती है — तो रुपये पर और दबाव बन सकता है।

 

निष्कर्ष

बुधवार 3 दिसंबर 2025 का दिन ₹/US$ एक्सचेंज रेट के लिए इतिहास में दर्ज हो गया — क्योंकि रुपये ने पहली बार डॉलर के मुकाबले ₹ 90 की मनोवैज्ञानिक और मापदंड स्तर को पार कर लिया। यह गिरावट सिर्फ एक आँकड़ा नहीं है, बल्कि आर्थिक वास्तविकता: बढ़ती महंगाई, महंगी आयात-वस्तुएँ, विदेश में पढ़ाई या यात्रा करना, और निवेश-भावनाओं में अस्थिरता — ये सब सीधे आम आदमी के खर्च-बजट और देश की आर्थिक दिशा को प्रभावित कर सकती हैं।

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